Wednesday 16 September 2015

लकवा का उपचार ::
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मस्तिष्क की धमनी में किसी रुकावट के कारण उसके जिस भाग को खून नहीं मिल पाता है मस्तिष्क का वह भाग निष्क्रिय हो जाता है अर्थात मस्तिष्क का वह भाग शरीर के जिन अंगों को अपना आदेश नहीं भेज पाता वे अंग हिलडुल नहीं सकते और मस्तिष्क (दिमाग) का बायां भाग शरीर के दाएं अंगों पर तथा मस्तिष्क का दायां भाग शरीर के बाएं अंगों पर नियंत्रण रखता है। यह स्नायुविक रोग है तथा इसका संबध रीढ़ की हड्डी से भी है।
लकवा रोग का लक्षण-
लकवा रोग से पीड़ित रोगी के शरीर का एक या अनेकों अंग अपना कार्य करना बंद कर देते हैं। इस रोग का प्रभाव अचानक होता है लेकिन लकवा रोग के शरीर में होने की शुरुआत पहले से ही हो जाती है। लकवा रोग से पीड़ित रोगी के बायें अंग में यदि लकवा मार गया हो तो वह बहुत अधिक खतरनाक होता है क्योंकि इसके कारण रोगी के हृदय की गति बंद हो सकती है और उसकी मृत्यु भी हो सकती है। रोगी के जिस अंग में लकवे का प्रभाव है, उस अंग में चूंटी काटने से उसे कुछ महसूस होता है तो उसका यह रोग मामूली से उपचार से ठीक हो सकता है।
लकवा रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-
लकवा रोग से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए सबसे पहले इस रोग के होने के कारणों को दूर करना चाहिए। इसके बाद रोगी का उपचार प्राकृतिक चिकित्सा से कराना चाहिए।
लकवा रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन नींबू पानी का एनिमा लेकर अपने पेट को साफ करना चाहिए ।
लकवा रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन भापस्नान करना चाहिए ।
लकवा रोग से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए उसके पेट पर गीली मिट्टी का लेप करना चाहिए ।
लकवा रोग से पीड़ित रोगी को सूर्यतप्त पीले रंग की बोतल का ठंडा पानी दिन में कम से कम आधा कप 4-5 बार पीना चाहिए तथा लकवे से प्रभावित अंग पर कुछ देर के लिए लाल रंग का प्रकाश डालना चाहिए और उस पर गर्म या ठंडी सिंकाई करनी चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से रोगी का लकवा रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
लकवा रोग से पीड़ित रोगी को लगभग 10 दिनों तक फलों का रस नींबू का रस, नारियल पानी, सब्जियों के रस या आंवले के रस में शहद मिलाकर पीना चाहिए।
लकवा रोग से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए अंगूर, नाशपाती तथा सेब के रस को बराबर मात्रा में मिलाकर पीने से रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।

आयुर्वेदिक दवा ---औषधि नं-1

औषधि के लिये लहसुन बड़ी गांठ वाला जिसमें से अधिक रस निकाल सकें ले।
विधि- लहसुन की आठ कली लेकर छील लें फिर इसे बारीक चटनी की तरह पीस लें फिर गाय का दूध लेकर उबाल लें, अब थोड़ा सा दूध अलग कर लें उसमें शक्कर मिला दें, जब यह दूध हल्का गरम रह जाय तो इस दूध में लहसुन मिलाकर पी जायें, ऊपर से इच्छा अनुसार जितना चाहें दूध पियें। परंतु ध्यान रखें लहसुन कभी खौलते दूध में न मिलावें वरना उसके गुण नष्ट हो जायेंगे। दिन में दो बार ये विधि करें। इस प्रकार दिन में दो बार इसका सेवन करें। तीन दिन तक दोनों समय लेने के बाद इसकी मात्रा बढ़ाकर 9 या 10 कलियां कर दें। एक हफ्ते बाद कम से कम 20 कली लहसुन लें। इसी तरह तीन बाद फिर बढ़ाकर 40 कली का रस दूध से लें। इसके बाद अब इनकी मात्रा घटाने का समय है जैसे-जैसे बढ़ाया वैसे-वैसे ही घटाते जाना है तीन-तीन दिन पर यानी
पहली बार – 8 कली लहसुन की लें लेत रहें
बार तीन दिन बाद-10 कली लहसुन की लें लेते रहें
बार 1 सप्ताह बाद – 20 कली लहसुन की लें लेते रहें
बार 1 सप्ताह बाद- 40 कली लहसुन की लें लेते रहें
इसका सेवन करने से और भी लाभ है पेशाब खुलकर होगा।
दस्त साफ होने लगेगी शरीर की चेतना शक्ति बढ़ने लगेगी तथा पक्षाघात का असर धीरे-धीरे कम होने लगेगा। अगर उच्चरक्त चाप है तो यह प्रयोग काफी कारगर सिद्ध हो सकता है।
औषधि नं-2
मोटी पोथी वाला 1 मोटा दाना लहसुन का लेकर छीलकर पीस लें बारीक और इसे चाट लें ऊपर से गाय का दूध हल्का गर्म चीनी डालकर पी जायें। अब दूसरे दिन 2 लहसुन की चटनी चाट कर दूध पी जायें। तीसरे दिन तीन लहसुन, चौथे दिन चार कली इसी तरह से ग्यारह दिन तक 11 लहसुन पीसकर चाटें व दूध पी जायें। अब बारहवें दिन से 1-1 कली लहसुन की घटाती जायें तथा सेवन की विधि वहीं होगी। एक लहसुन की संख्या आ जाने पर बंद कर दें पीना। इससे हाई ब्लड प्रेशर का असर कम होगा। पक्षाघात का प्रभाव कम होगा। सर का भारी पन ठीक होगा। नींद अच्छी आयेगी। दस्त खुलकर होगा। भूख अच्छी लगेगी। (अगर आप सामान्य तरीके से रोज लहसुन खायें तो इसका खतरा ही नहीं होगा।)
औषधि नं-3
लहसुन व शतावर- 7-8 कली लहसुन, शतावर का चूर्ण 1 तोला दोनों को खरल में डालकर घोंट लें, आधा किलो दूध में शक्कर मिलाकर लहसुन शतावर पिसा हुआ मिलाकर पी जायें इसे लेने पर हल्का सुपाच्य भोजन लें। शरीर के हर अंग का भारी पन ठीक होगा साथ पक्षाघात में फायदा होगा। इसे 31 दिन लगातार लें।
औषधि नं-4
लहसुन,शतावर चूर्ण, असगंध चूर्ण- 1 चाय का बड़ा चशतावर चूर्ण, उतनी ही मात्रा में असगंध चूर्ण दोनों चूर्ण को दूध में मिलाकर पियें साथ दोपहर के भोजन के साथ लहसुन लें। लहसुन की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाते जायें, रोटी, आंवला, लहसुन का प्रयोग भोजन में अवश्य करें। शरीर की मालिश भी करें इन सभी विधियों से पक्षाघात में जल्दी व सरलता से मरीज ठीक होता है।
औषधि नं-5
लहसुन छीलकर पीस लें 3-4 कली, फिर उसमें उतनी ही मात्रा में शहद मिला कर चाटें। धीरे-धीरे लहसुन की मात्रा बढ़ाते जायें 1-1 कली करके कम से कम 11-11 कली तक पहुंचे साथ बराबर मात्रा में शहद भी मिलाकर चाटें। साथ लहसुन का रस किसी तेल में मिलाकर उस प्रभावित हिस्से पर लेप, मालिश हल्के हाथ से करें। लहसुन के रस को थोड़ा गरम करके लगायें धीरे-धीरे काफी फायदा पहुंचेगा लहसुन से रक्त संचार ठीक तरह से होता है।
औषधि नं-6
दो पोथी पूरी मोटे दाने वाले पीसकर रस निकाल लें अब इसे चार तोला तिल के तेल या सरसों के तेल में मिलाकर पकायें, जब सिर्फ तेल रह जाये तो छानकर इस तेल से सुबह, शाम मालिश करें लकवा, वात रोग मिट जायेगा। अगर आप तिल का तेल इस्तेमाल करें ज्यादा अच्छा होगा।
औषधि नं-7
पक्षाघात के रोगी को आप लहसुन की चटनी को मख्खन के समभाग के साथ भी दे सकते हैं(लहसुन मख्खन बराबर मात्रा) में। यह सुरक्षित योग है इसे प्रातः सांय दोनों समय प्रयोग कर सकते हैं।
घटक द्रव्य; रस सिन्दूर, शुध्ध गन्धक, कान्त लौह भस्म, वन्ग भस्म, नाग भस्म, ताम्र भस्म, अभ्रक भस्म, तीक्षण लौह भस्म, सोन्ठ, मिर्च, पीपल, सब समान भाग लेकर कूट पीस छानकर पानी के साथ खरल में डालकर अच्छी तरह एक दिन घोण्टे /
बाद में त्रिफला और त्रिकुटा और सम्भालू और चित्रक और भ्रन्गराज और सहजना और कूठ और आवला और कुचला और आक और धतूरा और अदरख के रस अथवा क्वाथ से तीन तीन भावनायें देकर सुखा कर और एक एक रत्ती या १५० मिलीग्राम की गोली बनाकर रख लें |
इस औषधि की मात्रा १५० मिलीग्राम से लेकर ३०० मिलीग्राम तक है / इसे शहद अथवा किसी वात नाशक अनुपान के साथ देना चाहिये|
उपवास के बाद रोगी को कबूतर का सूप देना चाहिये। कबूतर न मिले तो चिकन का सूप दे सकते हैं। शाकाहारी रोगी मूंग की दाल का पानी पियें। रोगी को कब्ज हो तो एनीमा दें।
१० ग्राम सूखी अदरक और १० ग्राम बच पीसलें इसे ६० ग्राम शहद मिलावें। यह मिश्रण रोगी को ६ ग्राम रोज देते रहें।
सौंठ और उड़द उबालकर इसका पानी पीने से लकवा ठीक होता है। यह परीक्षित प्रयोग है।
2 6 ग्राम कपास की जड़ का चूर्ण, 6 ग्राम शहद में मिलाकर सुहब शाम लेने से लाभ होता है।
बरसात में निकलने वाला लाल रंग का कीडा वीरबहूटी लकवा रोग में बेहद फ़ायदेमंद है। बीरबहूटी एकत्र करलें। छाया में सूखा लें। सरसों के तेल पकावें।इस तेल से लकवा रोगी की मालिश करें। कुछ ही हफ़्तों में रोगी ठीक हो जायेगा। इस तेल को तैयार करने मे निरगुन्डी की जड भी कूटकर डाल दी जावे तो दवा और शक्तिशाली बनेगी।
एक बीरबहूटी केले में मिलाकर रोजाना देने से भी लकवा में अत्यन्त लाभ होता है।
सफ़ेद कनेर की जड की छाल और काला धतूरा के पत्ते बराबर वजन में लेकर सरसों के तेल में पकावें। यह तेल लकवाग्रस्त अंगों पर मालिश करें। अवश्य लाभ होगा।
लहसुन की ५ कली दूध में उबालकर लकवा रोगी को नित्य देते रहें। इससे ब्लडप्रेशर ठीक रहेगा और खून में थक्का भी नहीं जमेगा।

टोटको को आजमायें -----

पैरालिसिस से पीडि़त व्यक्ति को लोहे की अंगूठी में नीलम एवं तांबे की अंगूठी में लहसुनिया जड़वाकर क्रमश: मध्यमा और कनिष्ठा अंगुली में पहनने से काफी लाभ होता है| इसके अलावा यदि काले कपड़े में पीपल की सूखी जड़ को बंधकर पीड़ित व्यक्ति के तकिये या सिर की नीचे रखने से भी काफी लाभ होता है|
वहीँ, यदि शनिवार के दिन एक नुकीली कील द्वारा लकवा पीडि़त अंग को आठ बार उतारकर शनिदेव का स्मरण करते हुए पीपल के वृक्ष के नीचे गाद दें और जब आको लाभ हो जाए तो श्रद्धा अनुसार दान करतें हुए कील को पुनः निकल कर नदी में प्रवाहित कर दें|
सम्पुर्नानद संस्कृत महाविधालय के सुरेन्द्र नाथ ओझा ने मछली के भेजे से दवा बनाई है |

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