Thursday, 29 October 2015

रीठा के औषधीय उपयोग :
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विभिन्न भाषाओं मे नाम :

संस्कृत अरिष्टक, रक्तबीज, फेनिल। ...हिन्दी रीठा।...अंग्रेजी SOAPNUT TREE
गुजराती अरीठा। ....मराठी रिठा।....पंजाबी रेठा।...तेलगू फेनिलामू, कुकुदुकायालु।
तमिल पत्रान कोट्टाई।....असमी हैथागुटी।....फारसी फुंदुक।
रीठा एक ऐसा पेड़ है जो पूरे भारतवर्ष में मिलता है। रीठा के पेड़ पर गर्मियों में फूल आते हैं, जो कि आकार में बहुत छोटे हैं। इनका रंग हल्‍का हरा होता है। सुखाया गया फल शैंपू, डिटर्जेंट या फिर हाथ धोने वाले साबुन के रूप में प्रयोग किया जाता है।
कुंकुदुकई साबुन और शैम्पू में इस्तेमाल किया जाता है और बालों के लिए अच्छा होता है।
• सुनार इसे सोने, चाँदी और दूसरी कीमती धातुओं को चमकाने में इस्तेमाल होता है।
• इसे माइग्रेन, एपिलेप्सी और कोरस के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है।
• इसके कीड़े मारने के गुण के कारण इसे जुएँ मारने में भी इस्तेमाल किया जाता है।
• इसे इलायची धोने और इनके रंग और फ्लेवर निखारने में भी इस्तेमाल किया जाता है।
• इसे मिलावटी तेल को साफ करने में के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है।
आधे सिर का दर्द : 
--• रीठे के फल को 1-2 कालीमिर्च के साथ घिसकर नाक में 4-5 बूंद टपकाने से आधे सिर का दर्द जल्द ही खत्म हो जाता है। 
--• रात को रीठे की छाल को पानी में डालकर रख दें और सुबह उसको मसलकर कपड़े द्वारा छानकर इसके पानी की 1-1 बूंद नाक में डालने पर आधे सिर का दर्द दूर हो जाता है।
दन्त रोग :
--• रीठे के बीजों को तवे पर भून-पीसकर इसमें बराबर मात्रा में पिसी हुई फिटकरी मिलाकर दांतों पर मालिश करने से दांतों के हर तरह के रोग दूर हो जाते हैं।
मुलायम बालों के लिए :
--• 100 ग्राम कपूर कचरी, 100 ग्राम नागरमोथा और 40-40 ग्राम कपूर तथा रीठे के फल की गिरी, 250 ग्राम शिकाकाई, 200 ग्राम आंवला। सभी को एक साथ लेकर चूर्ण बना लें, फिर इस चूर्ण को लगभग 50 मिलीलीटर की मात्रा में पानी मिलाकर लेप बना लें। इस लेप को बालों पर लगायें। इसके पश्चात बालों को गर्म पानी से खूब साफ कर लें। इससे सिर के अंदर की जूं-लींके मर जाती हैं और बाल मुलायम हो जाते हैं। रीठा, आंवला, शिकाकाई को मिलाने के बाद बाल धोने से बाल सिल्की, चमकदार, रूसी-रहित और घने हो जाते हैं।
बालों की रूसी : 
--• रीठा से बालों को धोने से बाल चमकदार, काले, घने तथा मुलायम होते हैं और बालों की रूसी दूर होती है।
बालों को काला करना : 
--• 250-250 ग्राम रीठा और सूखा आंवला पिसा हुआ और 25-25 ग्राम शिकाकाई की फली, मेंहदी की सूखी पत्तियां तथा नागरमोथा को मिलाकर एक साथ पीस लें। शैम्पू तैयार है। इसका एक बड़ा चम्मच पानी में उबालकर इससे सिर को धोयें। इससे सफेद बालों में कालापन आ जाएगा।
वीर्य वृद्धि :
--• रीठे की गिरी को पीसकर इसमें बराबर मात्रा में गुड़ मिलाकर 1 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम 1 कप दूध के साथ सेवन करने से वीर्य बढ़ता है।
गले के रोग :
--• 10 ग्राम रीठे के छिलके को पीसकर लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग सुबह और लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग शाम को पान के साथ या शहद में मिलाकर रोजाना लेने से गले के रोगों में आराम मिलता है।
गले का दर्द : 
--• रीठे के छिलके को पीसकर लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग शहद में मिलाकर सुबह-शाम रोगी को चटाने से गले का दर्द दूर हो जाता है।
अफीम का विष : 
--• पानी में रीठे को इतना उबालें कि भाप आने लगे, फिर इस पानी को आधे कप की मात्रा में रोगी को पिलाने से अफीम का जहर उतर जाता है।
बिच्छू का विष : 
--• रीठे के फल की गिरी को पीसकर उसमें बराबर मात्रा में गुड़ मिलाकर 1-2 ग्राम की गोलियां बना लें। इन गोलियों को 5-5 मिनट के बाद पानी के साथ 15 मिनट में ही 3 गोली लेने से बिच्छू का जहर खत्म हो जाता है।
पायरिया :
--• 250 ग्राम रीठा के छिलके को भूनकर और बारीक पीसकर मंजन बना लें। रोजाना चौथाई चम्मच रीठे की राख में 5 बूंद सरसों का तेल मिलाकर मंजन करें। इससे लगातार 2 महीने तक मंजन करने से पायरिया रोग ठीक हो जाता है।
दस्त :
--• 1 रीठे को आधा लीटर पानी में पकाकर ठंडा करके फिर उस पानी को आधे कप की मात्रा में रोजाना सुबह-शाम पीने से दस्त आना बंद हो जाता है।
बवासीर (अर्श) : 
--• रीठा के पीसे हुए छिलके को दूध में मिलाकर बेर के बराबर गोलियां बना लें। रोजाना सुबह-शाम 1-1 गोली नमक तथा छाछ के साथ लेने से बवासीर के रोग में आराम आता है।
--• रीठा के छिलके को जलाकर उसके 10 ग्राम भस्म (राख) में 10 ग्राम सफेद कत्था मिलाकर पीस लें। इस आधे से 1 ग्राम चूर्ण को रोजाना सुबह पानी के साथ लेने से बवासीर के रोग में आराम आता है। 
. रीठे के फल में से बीज निकालकर फल के शेष भाग को तवे पर भूनकर कोयला बना लें, फिर इसमें इतना ही पपड़िया कत्था मिलाकर अच्छी तरह से पीसकर कपडे़ से छान लें। इसमें से 125 मिलीग्राम औषधि सुबह-शाम मक्खन या मलाई के साथ 7 दिनों तक सेवन करें। नमक और खटाई से परहेज रखें।
मासिक धर्म सम्बंधी परेशानियां :
--• रीठे का छिलका निकालकर उसे धूप में सुखा लें। फिर उसमें रीठा का 2 ग्राम चूर्ण शहद के साथ सेवन करते हैं। यह माहवारी सम्बंधी रोगों की अचूक दवा है।
नजला, जुकाम :
--• 10-10 ग्राम रीठा का छिलका, कश्मीरी पत्ता और धनिया को पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को नाक से सूंघने से जुकाम में लाभ होता है।
उपदंश (सिफलिश) :
--• रीठे का छिलका पिसा हुआ पानी में मिलाकर चने के बराबर गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें। 1 गोली दही में लपेटकर सुबह के समय खायें। थोड़ी दही ऊपर से खाने से उपदंश रोग में लाभ मिलता है। परहेज में नमक और गर्म चीजें न खायें।
फोड़ा :
--• 50 ग्राम रीठा की छाल, सड़ा हुआ गोला, नारियल, सड़ी गली सुपारी और 100 मिलीलीटर तिल का तेल और 400 मिलीलीटर पानी के साथ घोलकर और पानी में ही मिलाकर हल्की आग पर पकाने के लिए रख दें। जब पानी जल जाये और केवल तेल बाकी रह जाये तो इसे उतारकर छान लें। इस तेल को लगाने से छाजन, दाद, खुजली, चकते, फोड़े-फुन्सी आदि सारे त्वचा के रोग दूर हो जाते हैं।
कुष्ठ (कोढ़):
--• रीठा को पीसकर कुष्ठ रोगी (कोढ़ के रोगी) के जख्मों पर लेप करने से जख्म जल्दी भर जाते हैं।
गंजापन :
--• अगर सिर में गंज (किसी स्थान से बाल उड़ गये हो) तो रीठे के पत्तों से सिर को धोयें और करंज का तेल, नींबू का रस और कड़वे कैथ के बीजों का तेल मिलाकर लगाने से लाभ होता है।
फल, छाल और बीज--
मात्रा- काढ़ा 30 से 50 मिली, उलटी के लिए 5 ग्राम चूर्ण। सामान्य मात्रा आधा से 1 ग्राम चूर्ण। 
-- पक्षाघात में-
रीठे का छिलका और काली मिर्च बराबर मात्रा में लेकर पीस लेते हैं और शीशी में भरकर रख लें। यह आवश्यकता पड़ने पर सुंघा दिया करें तो इससे लकवा (पक्षाघात), मानसिक उन्मत्तता, जिसकी सूंघने की शक्ति (घ्राणशक्ति) चली गई हो तथा नींद न आती हो (अनिद्रा) में ये लाभ पहुंचाने वाला सरल प्रयोग है।
-- अधकपारी (आधाशीशी)- 
आधे भाग में तेज सिरदर्द हो, तब रीठे के छिलके और काली मिर्च को पानी में घिसकर नाक में टपकाने से तुरंत लाभी होता है।
--. बेहोशी (मरूच्छा), हिस्टीरिया और मिरगी में- 
रीठे के फल की गिरी को पानी में घिसकर 2 या 36 बूंद नाक में टपका दें। इससे बेहोशी दूर होती है। आंख में भी आंज देते हैं। आंखों की जलन दूर करने के लिए गाय का घी या मक्खन आंख आंजने से शांति मिलती है।
-- प्रसवोपरांत वायु प्रकोप में- 
प्रसव के बाद वायु प्रकोप होने से स्त्रियों का मास्तिष्क शून्य हो जाता है। आंखो के आगे अंधेरा छाने लगता है। दांतों के दोनों जबड़े भिंच जाते हैं। ऐसे परिस्थिति में रीठे को पानी में घिसकर झाग (फेन) पैदा कर आंखों में आंजने से रीठा जादुई असर दिखाता है। तत्काल रोग निवृत्ति होती है।
-- किडनी (गुरदों के) दर्द में- रीठे का छिलका पींस लें तथा अंदर के बीज (गिरी जिसका काला छिलका हटा दें।) महीन पीसकर पानी से पांच गोली बना लें। 1 गोली सेवन कराएं। एक से राहत न मिले तो फिर 1 गोली और सेवन कराएं।
-- फोड़े-फुंसियों पर- रीठ के छिलके को पीसकर लाल शक्कर मिलाएं तथा साबुन मिलाकर पानी के साथ मलहम जैसा बना लें और दिन में दो बार लगाएं। चमत्कारी लाभी होगा।
-- नजला और जुकाम में- रीठे का तेल पुराने जुकाम के लिए अति उत्तम है। इसे बनाने का तरीका इस प्रकार है। रीठे का छिलका 20 ग्राम, नीम के फल (निबोली) की मिंगी 20 ग्राम लेकर आधा लीटर पानी में रातभर भिगोकर रखें। प्रात: काल पीसकर उबालें और आधा पानी शेष रहे, तब 125 मिली, सरसों के तेल में मिलाकर उबालें। जब उतार लें। तेल ठंडा कर शीशी में भरकर रखें। आवश्यकता पड़ने पर 2-3 बूंद इससे लाभ होगा।
-- बालों के रोग में- जूं-लीख मारने के लिए तथा बालों को काले, रेशमी, मुलायम बनाने के लिए उत्तम पाउडर घर में बनाएं।
कपूरकचरी, नागरमोथा 10-10 ग्राम और कपूर तथा रीठे की गिरी 40-40 ग्राम, शिकाकाई 150 ग्राम, 200 ग्राम आंवला सबको पीसकर चूर्ण बना लें। सबको मिलाकर रख लें। जब भी उपयोग करना हो, 50 ग्राम चूर्ण लेकर 400 मि.ली. पानी में 30 मिनट तक भिगोकर रखें। 30 मिनट बाद मसलकर छानकर उस पानी से बालों को धोएं।
-- मासिकधर्म की रुकावट में- रीठे के फलों की गरी को पीसकर उसकी बत्ती बनाकर स्त्री की जननेंद्रिय में रखने से मासिकधर्म की रुकावट दूर होती है। प्रसव के समय भी यह बत्ती रखने पर बिना विलंब के प्रसव हो जाता है।
--. दमा एवं कफजनित खांसी में- 5 ग्राम रीठे के छिलके का चूर्ण 250 मिली. पानी में काढ़ा बनाकर पिलाएं। उल्टी होने पर गरम पानी अधिक मात्रा में पिलाएं, जिससे खुलकर उल्टी हों तथा सारा कफ फेफड़े से निकल जाए, जिससे श्वास, खांसी कफजनित से मुक्ति मिल सके।

चेतावनी: रीठा को आंखों से दूर रखें।


Wednesday, 21 October 2015

अल्‍फा-अल्‍फा ALFALFA ‘पौधों का बाप’ और धरती का वरदान

 अल्‍फा-अल्‍फा ALFALFA ‘पौधों का बाप’ और धरती का वरदान ।
अल्‍फा-अल्‍फा (ALFALFA) धरती का वरदान हैं, आज ढेरो देशी और विदेशी कंपनिया इस पर अनेको अनुसंधान कर चुकी हैं, और इसको सुपर फ़ूड माना गया हैं।

आइये जाने इसके बेहतरीन गुणों बारे में।

अल्‍फा-अल्‍फा विटामिन, मिनरल और अन्‍य पोषक तत्‍वों से भरपूर होता है। यह आपकी हड्डियों को ताकत देने के साथ उनके विकास में भी सहायक होता है। इसके अलावा यह स्‍वस्‍थ शरीर के रख रखाव में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसमें प्रोटीन और विटामिन ए, विटामिन बी 1, विटामिन बी 6, विटामिन सी, विटामिन ई, और विटामिन के होता है। इसके अलावा इसमें कैल्शियम, पोटेशियम, कैरोटीन, आयरन और जिंक भी होता है। इसका सेवन बीज, पत्ते या गोलियों के रूप में लिया जा सकता है।
किडनी की समस्‍याओं, अर्थराइटिस, यूरीन से जुड़ी समस्‍याओं, कोलेस्‍ट्रॉल के स्‍तर, स्‍ट्रोक जैसी कई समस्‍याओं का इलाज करने में इसका इस्‍तेमाल किया जाता है।
अल्‍फा-अल्‍फा को रिजका भी कहते हैं। अल्‍फा-अल्‍फा अरबी शब्‍द है जिसका अर्थ है ‘पौधों का बाप’। अल्‍फा-अल्‍फा की जड़ें जमीन से लगभग बीस से तीस फीट नीचे होती हैं। यहां उन्‍हें वे खनिज लवण मिलते हैं, जो आमतौर पर धरती की सतह पर मौजूद नहीं होते।

अल्फा-अल्‍फा के फायदे

अल्फा-अल्‍फा का इस्‍तेमाल कई स्‍वास्‍थ्‍य स्थितियों के इलाज के लिए किया जाता है। इसे मिनरल का सबसे उच्‍च स्रोत माना जाता है। इसमें मौजूद विटामिन, मिनरल और अन्य पोषक तत्व कई इसे गुणकारी बनाते हैं। किडनी की समस्‍याओं, अर्थराइटिस, यूरीन से जुड़ी समस्‍याओं, कोलेस्‍ट्रॉल के स्‍तर, स्‍ट्रोक जैसी कई समस्‍याओं का इलाज करने में इसका इस्‍तेमाल किया जाता है। आइए इसके फायदों के बारे में जानें।

गठिया के लिए उपचार

हड्डियों के गठन और मजबूत बनाने के लिए मिनरल की आवश्‍यकता होती है। यह आवश्‍यक मिनरल अल्‍फा-अल्‍फा में भरपूर मात्रा में पाया जाता है। इसलिए इसे गठिया के उपचार के लिये बहुत फायदेमंद माना जाता है। अल्‍फा-अल्‍फा (विशेष रूप से इसके बीज से) से बनी चाय गठिया के उपचार में लाभदायक परिणाम देती है।

कैंसर पर कंट्रोल

अल्फा-अल्‍फा – रिजका में मौजूद एक एमीनो अम्ल पैंक्रियाटिक, ल्यूकेमिया और कोलन कैंसर के मुकाबले के लिए अच्छा होता है।

डायबिटीज में अल्‍फा-अल्‍फा का प्रयोग

अल्‍फा-अल्‍फा ब्‍लड शूगर के स्‍तर को कम करने के लिए भी जाना जाता है। इसलिए इसे डायबिटीज को दूर करने का एक प्राकृतिक उपचार माना जाता है। डा‍यबिटीज से पी‍ड़ि‍त व्‍यक्तियों को इसका सेवन करना चाहिए।

किडनी की पथरी के लिए उपाय

किडनी से पथरी को दूर करने के लिए भी अल्‍फा-अल्‍फा का उपयोग किया जा सकता है। किडनी की पथरी को गलाकर निकालने में विटामिन ए, सी, ई और जिंक मददगार साबित होते है। इन सब विटामिन और मिनरल को आप अल्फा-अल्‍फा पाउडर और अल्फा-अल्‍फा स्प्राउट में पा सकते हैं।

गंजेपन और बालों के झड़ने का प्राकृतिक उपचार

अल्‍फा-अल्‍फा का रस और बराबर मात्रा में ही गाजर और सलाद (Lettuce) के पत्तों को मिलाकर नियमित रूप से बालों में लगाइए। इससे आपके बालों के विकास में मदद मिलती है। पोषक तत्‍वों से समृद्ध यह रस बालों के विकास और बालों के झड़ने की रोकथाम के लिए विशेष रूप से उपयोगी होता है।

मासिक धर्म से जुड़ी परेशानियों में लाभकारी

अल्‍फा-अल्‍फा का इस्‍तेमाल महिलाओं के लिए भी बहुत उपयोगी होता है। अल्‍फा-अल्‍फा में मौजूद एस्ट्रोजेनिक गुण के कारण यह महिलाओं में मासिक धर्म के दौरान होने वाले लक्षणों और दर्द को कम करने का बहुत ही प्रभावी उपाय है।

श्वास संबंधी रोगों को इलाज

अल्‍फा-अल्‍फा का जूस क्‍लोरोफिल का बहुत अच्‍छा स्रोत है इसलिए यह सांस से जुड़ी परेशानियों के उपचार में भी कारगर होता है। सांस की तकलीफ विशेष रूप से फेफड़ो और साइनस के कारण होने वाली समस्‍याओं के समाधान के लिए इसके जूस का इस्‍तेमाल किया जाता है।

उच्‍च रक्तचाप में अल्‍फा-अल्‍फा

उच्च रक्तचाप का उपचार, अल्‍फा-अल्‍फा के स्‍वास्‍थ्‍य लाभों में से एक और लाभ है। इसके सेवन से कठोर धमनियों को नर्म करने में मदद मिलती है जिससे उच्‍च रक्तचाप को प्राकृतिक रूप से कम किया जा सकता है।

पेट के रोगों की औषधि

अल्‍फा-अल्‍फा का उपयोग पेट से संबधित बीमारियों के इलाज के लिए एक औषधि के रूप में किया जाता है। नियमित रूप से थोड़ी मात्रा में अल्‍फा-अल्‍फा के बीज का सेवन करने से भी पेट की बीमारियों से लड़ने के खिलाफ इम्युनिटी मजबूत होती है। आप अल्‍फा-अल्‍फा का इस्‍तेमाल चाय के रूप में भी कर सकते हैं।

मोटापा कम करें

अगर आप अपना वजन कम करने की कोशिश कर रहे हैं, तो अल्‍फा-अल्‍फा स्‍प्राउट्स आपके लिए स्वस्थ और स्वादिष्ट विकल्‍प हो सकता है। अल्‍फा-अल्‍फा स्‍प्राउट्स एक आदर्श कम कैलोरी आहार है। जो चीनी, वसा, संतृप्त वसा या कोलेस्ट्रॉल से मुक्त होता हैं। यह कुरकुरा खाद्य फाइबर और प्रोटीन से भरपूर होता है इसलिए इसको खाने के बाद आपको परिपूर्णता का एहसास लंबे समय तक होता है।

सफ़ेद दाग का इलाज

रिजका (Alfalfa) सौ ग्राम, रिजका सौ ग्राम ककडी का रस मिलाकर पियें सफ़ेद दाग में बहुत आराम मिलता हैं।


विटामिन-ई के फायदे::
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शरीर को स्वस्थ बनाएं रखने के लिए विटामिन ई काफी लाभदायक होता है। सही मात्रा में इसके सेवन से शरीर कई प्रकार की बीमारियां से बचा रहता है और त्वचा पर भी निखार बना रहता है। इसे प्राप्त करना भी बहुत मुश्किल नहीं है। विटामिन ई वनस्‍पति तेल, गेंहू, हरे साग, चना, जौ, शकरकंद, खजूर, चावल के मांढ, क्रीम, बटर, स्‍प्राउट, कड लीवर ऑयल, आम, पपीता, कद्दू, पॉपकार्न और फ्रूट में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसके अलावा यह मछली में भी अधिक होता है।
कई फलों, तेलों और ड्राय फ्रूट्स में विटामिन-ई पाया जाता है, और यह सेहत के साथ-साथ सौंदर्य के लिए भी बेहद लाभदायक होता है।
खासतौर पर सोयाबीन, जैतून, तिल के तेल, सूरजमुखी, पालक, ऐलोवेरा, शतावरी, ऐवोकेडो के अलावा कई चीजों में वि‍टामिन-ई की मात्रा मौजूद होती है।
आपको प्रतिदिन कितने विटामिन ई की आवश्यकता है, यह आपकी उम्र और लिंग पर निर्भर करता है। किस उम्र में कितना विटामिन ई चाहिए, जानिए-
6 महीने के शिशु को 4 मिलिग्राम प्रतिदिन (नवजात शिशु)
7 से 12 महीने के शिशु को 5 मिलिग्राम प्रतिदिन (नवजात शिशु)
1 से लेकर 3 साल के बच्चे को 6 मिलिग्राम प्रतिदिन
4 से लेकर 8 साल के बच्चे को 7 मिलिग्राम प्रतिदिन
9 से लेकर 13 साल के बच्चे को 11 मिलिग्राम प्रतिदिन
14 साल और उससे बडे मनुष्यों को 15 मिलिग्राम प्रतिदिन
स्तनपान कराने वाली महिलाओं को 17 मिलिग्राम प्रतिदिन
विटामिन 'ई' की कमी से नुकसान
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विटामिन ई की कमी से वीर्य निर्बल हो जाना, नपुंसकता, बांझपन, आंतों में घाव, गंजापन, गठिया, पीलिया, मधुमेह तथा लिमर व हार्ट प्रोबलम्स हो सकती हैं। इसके अलावा विटामिन ई की कमी से शरीर के अंगों का सुचारू रूप से कार्य न कर पाना, मांसपेशियों में अचानक से कमजोरी आ जाना तथा नजर कमजोर हो जाना व दिखने में झिलमिलाहट महसूस होना, जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

आइए जानते हैं, विटामिन-ई के ऐसे ही कुछ लाभ - ```````````````````````````````````````````````````

1 बेहतरीन क्लिंजर - विटामिन-ई का उपयोग कई तरह के सौंदर्य प्रसाधनों में किया जाता है। इसका अहम कारण है, कि यह एक बेहतरीन क्लिंजर है, जो त्वचा की सभी परतों पर जमी गंदगी और मृत कोशिकाओं की सफाई करने में सहायक है।


2 आरबीसी निर्माण- शरीर में रेड ब्‍लड सेल्‍स यानि लाल रक्‍त कोशिकाओं का निर्माण करने में विटामिन-ई सहायक है। प्रेग्‍नेंसी के दौरान विटामिन- ई का सेवन बच्‍चे को एनीमिया यानि खून की कमी से बचाता है।
3 मानसिक रोग - एक शोध के अनुसार विटामिन-ई की कमी से मानसिक रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। शरीर में विटामिन-ई की पर्याप्‍त मात्रा मानसिक तनाव और अन्य समस्‍याओं को कम करने में मदद करती है।
4 एंटी एजिंग - विटामिन-ई में भरपूर एंटी ऑक्सीडेंट्स पाए जाते हैं, जो त्वचा पर बढ़ती उम्र के असर को कम करते हैं। इसके अलावा यह झुर्रियों को भी कम करने और रोकने में बेहद प्रभावकारी है।
5 हृदय रोग - शोध के अनुसार जिन लोगों के शरीर में विटामिन ई की मात्रा अधिक होती है, उन्हें दिल की बीमारियों का खतरा कम होता है। यह मेनोपॉज के बाद महिलाओं में होन वाले हार्ट स्ट्रोक की संभावना को भी कम करता है।
6 प्राकृतिक नमी - त्वचा को प्राकृतिक नमी प्रदान करने के लिए विटामिन-ई बेहद फायदेमंद है। इसके अलावा यह त्वचा में कोशिकाओं के नवनिर्माण में भी सहायक है।
7 यूवी किरणों से बचाव - सूरज की हानिकारक अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाने में विटामिन-ई महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सनबर्न की समस्या या फोटोसेंसेटिव होने जैसी समस्याओं से विटामिन-ई रक्षा करता है।
8 विटामिन-ई का प्रयोग करने पर अल्जाइमर जैसी समस्याओं का खतरा कम होता है, इसके अलावा यह कैंसर से लड़ने में भी आपकी मदद करता है। एक शोध के अनुसार जिन लोगों को कैंसर होता है, उनके शरीर में विटामिन-ई की मात्रा कम होती है।
9 विटामिन ई की पर्याप्त मात्रा डायबिटीज के खतरे को कम करने में मदद करती है। यह ब्रेस्ट कैंसर की रोकथाम, इम्यून सिस्टम को मजबूती प्रदान करने के साथ-साथ एलर्जी से बचाव में भी उपयोगी होता है।
10 यह कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम करता है और शरीर में वसीय अम्लों के संतुलन को बनाए रखने में सहायता करता है। इसके साथ ही यह थायराइड और पिट्यूटरी ग्रंथि‍ के कार्य में होने वाले अवरोध को रोकता है।

माहवारी (पीरियड्स) में अधिक रक्त स्राव होने पर ::
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कई महिलाओं और लड़कियों को पीरियड्स के दौरान बहुत ज्‍यादा ब्‍लीडिग होती है।
अगर एक दो घंटे के अन्दर पैड बदलना पड़ रहा है या माहवारी एक हफ्ते से ज्यादा समय तक रहती है, तो यह अति रक्‍तस्राव माना जाता है। अक्सर फाइब्रायड, रसौली, ट्यूमर जैसी बीमारियों के कारण भी माहवारी में अधिक रक्‍तस्राव होता है। लड़कियों में भारी माहवारी का कारण कुछ समय के लिए हार्मोन में होने वाला बदलाव होता है। अधिक उम्र की महिलाओं में रजोनिवृत्ति के कारण होने वाले हार्मोन असंतुलन से भारी माहवारी हो सकती है।

बबूल

इस तरह की समस्‍या होने पर बबूल का गोंद को घी में भून कर पीस लें अब इसमें बराबर वजन में असली सोना गेरू पीसकर मिला कर तीन बार छान कर शीशी में भर लें। पीरियड्स के दिनों में सुबह शाम 1-1 चम्मच चूर्ण ताजे पानी के साथ लेने से अधिक मात्रा में स्राव होना बन्द हो जाता है।

अदरक

कुछ मिनट पानी में अदरक को उबालकर तैयार मिश्रण मासिक धर्म में अत्‍यधिक प्रवाह को रोकने में मदद करता है। इस मिश्रण को आप चीनी या शहद की मदद से मीठा भी कर सकते है। इस मिश्रण को आप भोजन करने के बाद दिन में तीन बार ले सकते हैं।

दालचीनी

एक कप उबलते पानी में दालचीनी की एक स्टिक द्वारा तैयार चाय पीरियड्स में होने वाला अति रक्तस्राव के लिए बहुत ही प्रभावी घरेलू उपाय है। आप वैकल्पिक रूप से इसमें दालचीनी की छाल से निकली कुछ बूंदों को भी मिला सकते हैं। दिन में दो बार इसका इस्‍तेमाल भारी माहवारी रक्‍तस्राव को रोकने में मदद करता है।

सरसों के बीज

40 ग्राम सरसों के सूखे बीज लेकर उन्‍हें पीसकर बारीक पाउडर बना लें। अत्‍यधिक रक्‍तस्राव की परेशानी से बचने के लिए इसमें से 2 ग्राम सरसों के बीज का पाउडर लेकर दिन में दो बार दूध के साथ मासिक धर्म से पहले या दौरान लें। यह भारी पीरियड्स को रोकने का एक प्रभावी घरेलू उपाय है।

धनिया

आधा लीटर पानी में लगभग 6 ग्राम धनिया के बीज डालकर खौलाएं और इसमें शक्‍कर मिला लें। मासिक चक्र के दौरान
इस काढ़े का सेवन अत्यधिक रक्तस्राव को रोकने के सबसे अच्छे घरेलू उपचारों में से एक है।

अजवायन के फूल

अजवायन के फूल व पत्तियों द्वारा तैयार चाय मासिक धर्म के दौरान अत्यधिक माहवारी रक्तस्राव को रोकने में बहुत प्रभावी होती है। एक कप पानी में एक चम्‍मच अजवायन के फूल की पत्तियों डालकर 10 मिनट के लिए उबालकर लेवे । अजवायन की चाय को बर्फ क्‍यूब के साथ मिलाकर माहवारी के दौरान भारी रक्‍तस्राव की गिरफ्त में आने पर पेट पर ठंडा सेक करने के रूप में भी इस्‍तेमाल किया जा सकता है।

केले के फूल

पके हुए केले के फूल के साथ दही का एक कप खाने से प्रोजेस्‍टेरोन बढ़ने लगता है, जिससे अत्‍यधिक रक्‍तस्राव पर नियंत्रण में मदद मिलती है। माहवारी के दौरान अत्‍यधिक रक्तस्राव के लिए एक प्रभावी प्राकृतिक उपाय है।

अशोक की छाल

लगभग 50 ग्राम अशोक की छाल को 2 कप पानी में तब तक खौलाएं जब तक कि यह आधा शेष न जाये। इस काढ़े को ठंडा होने पर प्रतिदिन एक गिलास पीने से तेजी से फायदा होता है।

अंजीर

अंजीर की ताजा और कोमल पत्तियों से तैयार रस भारी रक्‍तस्राव को रोकने में कारगर होता है। मासिक धर्म चक्र के दौरान एक दिन में दो बार लिया अंजीर का रस अत्यधिक माहवारी रक्तस्राव के लिए एक प्रभावी उपचार है। इस काढ़े को बनाने के लिए एक कप पानी में थोड़ी सी अंजीर की ताजा पत्तियों को लेकर उबाल लें।

तुलसी की जड़ को छाया में सुखाकर पीसकर चुटकी पावडर पान में रखकर खाने से अनावश्यक रक्त स्त्राव बंद होता है।

तिल के बीज, तरबूज के बीज, जई, कोको, कद्दू, स्क्वैश और मैग्नीशियम युक्‍त अन्‍य खाद्य पदार्थों को अपने आहार में शामिल करें।

बालों का देखभाल ::
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1. अमरबेल : 250 ग्राम अमरबेल को लगभग 3 लीटर पानी में उबालें। जब पानी आधा रह जाये तो इसे उतार लें। सुबह इससे बालों को धोयें। इससे बाल लंबे होते हैं।
2. त्रिफला : त्रिफला के 2 से 6 ग्राम चूर्ण में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग लौह भस्म मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से बालों का झड़ना बन्द हो जाता है।
3. कलौंजी : 50 ग्राम कलौंजी 1 लीटर पानी में उबाल लें। इस उबले हुए पानी से बालों को धोएं। इससे बाल 1 महीने में ही काफी लंबे हो जाते हैं।
4. नीम : नीम और बेर के पत्त
ों को पानी के साथ पीसकर सिर पर लगा लें और इसके 2-3 घण्टों के बाद बालों को धो डालें। इससे बालों का झड़ना कम हो जाता है और बाल लंबे भी होते हैं।
5. लहसुन : लहसुन का रस निकालकर सिर में लगाने से बाल उग आते हैं।
6. सीताफल : सीताफल के बीज और बेर के बीज के पत्ते बराबर मात्रा में लेकर पीसकर बालों की जड़ों में लगाएं। ऐसा करने से बाल लंबे हो जाते हैं।
7. आम : 10 ग्राम आम की गिरी को आंवले के रस में पीसकर बालों में लगाना चाहिए। इससे बाल लंबे और घुंघराले हो जाते हैं।
8. शिकाकाई : शिकाकाई और सूखे आंवले को 25-25 ग्राम लेकर थोड़ा-सा कूटकर इसके टुकड़े कर लें। इन टुकड़ों को 500 ग्राम पानी में रात को डालकर भिगो दें। सुबह इस पानी को कपड़े के साथ मसलकर छान लें और इससे सिर की मालिश करें। 10-20 मिनट बाद नहा लें। इस तरह शिकाकाई और आंवलों के पानी से सिर को धोकर और बालों के सूखने पर नारियल का तेल लगाने से बाल लंबे, मुलायम और चमकदार बन जाते हैं। गर्मियों में यह प्रयोग सही रहता है। इससे बाल सफेद नहीं होते अगर बाल सफेद हो भी जाते हैं तो वह काले हो जाते हैं।
9. मूली : आधी से 1 मूली रोजाना दोपहर में खाना-खाने के बाद, कालीमिर्च के साथ नमक लगाकर खाने से बालों का रंग साफ होता है और बाल लंबे भी हो जाते हैं। इसका प्रयोग 3-4 महीने तक लगातार करें। 1 महीने तक इसका सेवन करने से कब्ज, अफारा और अरुचि में आराम मिलता है।
नोट : मूली जिसके लिए फयदेमन्द हो वही इसका प्रयोग कर सकते हैं।
10. आंवला : सूखे आंवले और मेंहदी को समान मात्रा में लेकर शाम को पानी में भिगो दें। प्रात: इससे बालों को धोयें। इसका प्रयोग लगातार कई दिनों तक करने से बाल मुलायम और लंबे हो जायेंगे।
11. ककड़ी : ककड़ी में सिलिकन और सल्फर अधिक मात्रा में होता है जो बालों को बढ़ाते हैं। ककड़ी के रस से बालों को धोने से तथा ककड़ी, गाजर और पालक सबको मिलाकर रस पीने से बाल बढ़ते हैं। यदि यह सब उपलब्ध न हो तो जो भी मिले उसका रस मिलाकर पी लें। इस प्रयोग से नाखून गिरना भी बन्द हो जाता है।
12. रीठा
* कपूर कचरी 100 ग्राम, नागरमोथा 100 ग्राम, कपूर तथा रीठे के फल की गिरी 40-40 ग्राम, शिकाकाई 250 ग्राम और आंवले 200 ग्राम की मात्रा में लेकर सभी का चूर्ण तैयार कर लें। इस मिश्रण के 50 ग्राम चूर्ण में पानी मिलाकर लुग्दी (लेप) बनाकर बालों में लगाना चाहिए। इसके पश्चात् बालों को गरम पानी से खूब साफ कर लें। इससे सिर के अन्दर की जूं-लींकें मर जाती हैं और बाल मुलायम हो जाते हैं।
* रीठा, आंवला, सिकाकाई तीनों को मिलाने के बाद बाल धोने से बाल सिल्की, चमकदार, रूसी-रहित और घने हो जाते हैं।
13. गुड़हल : * गुड़हल के फूलों के रस को निकालकर सिर में डालने से बाल बढ़ते हैं।
* गुड़हल के पत्तों को पीसकर लुग्दी बना लें। इस लुग्दी को नहाने से 2 घंटे पहले बालों की जड़ों में मालिश करके लगायें। फिर नहायें और इसे साफ कर लें। इस प्रयोग को नियमित रूप से करते रहने से न केवल बालों को पोषण मिलेगा, बल्कि सिर में भी ठंड़क का अनुभव होगा।
* गुड़हल के पत्ते और फूलों को बराबर की मात्रा में लेकर पीसकर लेप तैयार करें। इस लेप को सोते समय बालों में लगाएं और सुबह धोयें। ऐसा कुछ दिनों तक नियमित रूप से करने से बाल स्वस्थ बने रहते हैं।
* गुड़हल के ताजे फूलों के रस में जैतून का तेल बराबर मिलाकर आग पर पकायें, जब जल का अंश उड़ जाये तो इसे शीशी में भरकर रख लें। रोजाना नहाने के बाद इसे बालों की जड़ों में मल-मलकर लगाना चाहिए। इससे बाल चमकीले होकर लंबे हो जाते हैं।
14. शांखपुष्पी : शांखपुष्पी से निर्मित तेल रोज लगाने से सफेद बाल काले हो जाते हैं।
15. भांगरा :
* बालों को छोटा करके उस स्थान पर जहां पर बाल न हों भांगरा के पत्तों के रस से मालिश करने से कुछ ही दिनों में अच्छे काले बाल निकलते हैं जिनके बाल टूटते हैं या दो मुंहे हो जाते हैं। उन्हें इस प्रयोग को अवश्य ही करना चाहिए।
* त्रिफला के चूर्ण को भांगरा के रस में 3 उबाल देकर अच्छी तरह से सुखाकर खरल यानी पीसकर रख लें। इसे प्रतिदिन सुबह के समय लगभग 2 ग्राम तक सेवन करने से बालों का सफेद होना बन्द जाता है तथा इससे आंखों की रोशनी भी बढ़ती है।
* आंवलों का मोटा चूर्ण करके, चीनी के मिट्टी के प्याले में रखकर ऊपर से भांगरा का इतना डाले कि आंवले उसमें डूब जाएं। फिर इसे खरलकर सुखा लेते हैं। इसी प्रकार 7 भावनाएं (उबाल) देकर सुखा लेते हैं। प्रतिदिन 3 ग्राम की मात्रा में ताजे पानी के साथ सेवन से करने से असमय ही बालों का सफेद होना बन्द जाता है। यह आंखों की रोशनी को बढ़ाने वाला, उम्र को बढ़ाने वाला लाभकारी योग है।
* भांगरा, त्रिफला, अनन्तमूल और आम की गुठली का मिश्रण तथा 10 ग्राम मण्डूर कल्क व आधा किलो तेल को एक लीटर पानी के साथ पकायें। जब केवल तेल शेष बचे तो इसे छानकर रख लें। इसके प्रयोग से बालों के सभी प्रकार के रोग मिट जाते हैं।
16. अनन्तमूल : अनन्तमूल की जड़ का चूर्ण 2-2 ग्राम दिन में 3 बार पानी के साथ सेवन करने से सिर का गंजापन दूर होता है।
17. तिल :
* तिल के पौधे की जड़ और पत्तों के काढ़े से बालों को धोने से बालों पर काला रंग आने लगता है।
* काले तिलों के तेल को शुद्ध करके बालों में लगाने से बाल असमय में सफेद नहीं होते हैं। प्रतिदिन सिर में तिल के तेल की मालिश करने से बाल हमेशा मुलायम, काले और घने रहते हैं।
* तिल के फूल और गोक्षुर को बराबर मात्रा में लेकर घी और शहद में पीसकर लेप बना लें। इसे सिर पर लेप करने से गंजापन दूर होता है।
* तिल के तेल की मालिश करने के एक घंटे बाद एक तौलिया गर्म पानी में डुबोकर उसे निचोड़कर सिर पर लपेट लें तथा ठण्डा होने पर दोबारा गर्म पानी में डुबोकर निचोड़कर सिर पर लपेट लें। इस प्रकार 5 मिनट लपेटे रखें। फिर ठंड़े पानी से सिर को धो लें। ऐसा करने से बालों की रूसी दूर हो जाती है।
और अंत एक बात याद रखे !! किसी भी विदेशी कंपनी का कोई भी शैंपू का प्रयोग मत करे !!
ये clinic all clear,clinic plus, head and shoulder,dove,pantene सब विदेशी कंपनिया बनती है ! और बहुत ही खतरनाक कैमिकलों का प्रयोग करती है ! !! और हर 2 -3 महीने बाद एक ही शैंपू मे थोड़ा बदलाव कर उसका नाम बादल कर फिर बेचने लग जाती है !

घुटनों का दर्द /जोड़ो का दर्द दूर करे ::
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घुटना एक कमजोर सायनोवियल जोड़ हैं। यह शरीर का सबसे बड़ा तथा जटिल जोड़ है। इस जोड़ में चार हड्डियां शामिल होती हैं। लगभग 15 मांसपेशियां, 13 वर्सा (गद्दीदार संरचनाएं), कई लिगामेंट, मेनिस्कस आदि भी इस जोड़ से सम्बंधित होती हैं। इन कारणों से घुटने में दर्द के कारण तथा स्थान अलग हो सकते हैं।

इस दर्द से बचाव
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- अपने वजन को उम्र, ऊंचाई एवं शारीरिक बनावट के अनुसार उचित रखना चाहिए। इसके लिए प्रिवेंटिव फिजियोथेरेपी के अन्तर्गत विशेष व्यायाम करना चाहिए।
- औसतन 1 से डेढ़ घंटे लगातार खड़े रहने के पश्चात् घुटनों को 5-10 मिनट का आराम देना चाहिए।
- चप्पल, जूते सही आकार-प्रकार के ही प्रयोग में लाना चाहिए।
- खानपान में कैल्शियम से परिपूर्ण आहार लेना चाहिए।
- अपना वजन नियंत्रित रखें क्योंकि ज्यादा वजन से घुटने तथा कूल्हों पर दबाव पड़ता है।
- कसरत तथा जोड़ों को हिलाने से भी आपको मदद मिलेगी।
- सुबह गर्म पानी से नहाएं।
मजबूत हड्डियों के लिए खाने की 10 चीजें
1. कम फैट वाला दूध 2. अंडे 3. पनीर 4. रागी या मड़आ 5. पालक
6. अंजीर 7. अजवाइन के पत्ते 8.मेथी के पत्ते 9.मछली 10. बादाम

घर पर लेप बनाये :-
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1. हल्दी ..,2.आमहल्दी ..,3.मेंदा लकड़ी ...,4.सोंठ ...,5.थोडा सा खाने वाला चुना (मूंगफली डेन जितना )...,6.शहद ...,7.देशी अंडा 1 

1 से 4 तक सभी का पावडर बनाकर आधा आधा चमच लेवे , इसमे शहद 1 चमच तथा अंडा दल कर अच्छीतरह से मिक्स कर पेस्ट बना लेवे |
यह पेस्ट/लेप को छुटने पर लगाकर धुप में बैठे , जब लेप सूखने लगे तब उस पर पुरानी रुई लपेट कर उस पर पट्टी कर देवे | फिर दुसरे दिन गर्म पानी से धो लेवे | ऐसा 4-5 लेप करने से दर्द ठीक होगा | ( यह परीक्षित लेप है )
राजस्थान,मध्यप्रदेश एवं आँध्रप्रदेश में "शलाई" के नाम से जाना जानेवाला पौधा अपने सक्रिय तत्व बोस्वेलिक एसिड के कारण पैन किलर में काम आता है (जो चित्र में दिया है )
इसके पत्तो का लेप करने से और ईस पर लगने वाला गोंद जिसे गुग्गल भी बोलते है ,उस से कई तरह की दवा बनाई जाती है |
--अजमोदादी चूर्ण ५ ग्राम तक दिन में ३ बार गर्म पानी से लेवे |
--पंचकोल चूर्ण ५ ग्राम तक दिन में ३ बार गर्म पानी से लेवे |
-- योगराज गुग्गल , लाक्षादी गूगल २-२ गोली दिन में ३ बार लेवे |
--पीड़ान्तक क्वाथ लेवे पतंजली का मिल सकता है |
--प्रतिदिन नारियल की गिरी का सेवन करें
-- मोठ को गर्म मिट्टी में सेक लें। फिर उनको पीसकर छान लें। उस आटे में घी डालकर सेकें। फिर उसमें चीनी की चासनी बनाकर मिलाकर लड्डू बना लें। दो लड्डू एक बार प्रात: भूखे पेट खायें। तेल तेज मसाले, खटाई जब तक लड्डू खायें,तब तक नहीं खायें। दर्द ठीक हो जायेगा। घुटनों में दर्द नया हो या पुराना, मोठ के लड्डू खाने से लाभ होता है।
--लगातार 20 दिनों तक अखरोट की गिरी 15-20 ग्राम रात में भिंगो कर सुबह खाने से घुटनों का दर्द समाप्त होता है।
--बिना कुछ खाए प्रतिदिन प्रात: एक लहसन कली, दही के साथ दो महीने तक लेने से घुटनों के दर्द में चमत्कारिक लाभ होता है।
--मैथी दाना का महीन चूर्ण एक चम्मच प्रतिदिन पानी से लेने पर घुटनों में दर्द नहीं होता।
--प्रतिदिन छोटे बच्चे घुटनों के बल चलते है वैसे चलने से कभी घुटने ख़राब नहीं होंगे |
भोजन में अंकुरित अनाज एवं दालें, अंकुरित मेथी, कम से कम तीन प्रकार के फल, दो प्रकार की मेवा (सूखे फल), तीन प्रकार की हरी सब्जियां, सलाद (प्रतिदिन कम से कम 600 ग्राम) और 10 से 12 गिलास शीतल जल लें।
धूम्रपान, मदिरा, मांस-मछली, अंडा कभी न खाएं। तले हुए मैदायुक्त भोजन से परहेज करें। सप्ताह में एक से दो दिन उपवास अवश्य रखें।
जिन लोगों को दवाओं के कारण आमाशय में अम्लउत्पन्न हो जाता है या फिर पेप्टिक अल्सर रोग से ग्रस्त हैं वे विजयसार की लकड़ी का बुरादा तथा अर्जुन की छाल की चाय का सेवन साधारण चाय के स्थान पर करें। ऐसा करने पर दर्द निवारक दवाओं की जरूरत कम होगी या पड़ेगी ही नहीं।
जौ के जवारे/गेहूं के जवारे प्रतिदिन 3 से 4 औंस (100 ग्राम) अवश्य लें।
जिन लोगों को गठिया की वजह से इतना दर्द रहता है कि रोजमर्रा का काम दूभर हो गया हो और हड्डी रोग विशेषज्ञ ने घुटने के जोड़ को ही बदलने की सलाह दे दी हो तब शल्य चिकित्सा करवाने से पहले निम्न आजमाकर देखें---
भोजन में बकरी का दूध, मौसम के अनुसार फल, हरी सब्जी में लौकी, तौरई, टिंडा तथा रामदाना/चैलाई का साग, सूखे मेवों में अखरोट की गिरी प्रतिदिन 30 ग्राम तक तथा 10 ग्राम तक अलसी के बीज खाएं। जौ/गेहूं के जवारे चबा कर खाएं।
अगर दांत ठीक न हों तो इनका रस निकालकर पिएं।
सावधानी बरतें: आलू, टमाटर, बैंगन, हरी मिर्च, लाल मिर्च, शिमला मिर्च,रसभरी कभी न खाएं।
सूजन — गोबर के छाने या उपले जलाकर इनकी राख सूजन वाली जगह बाँधने से पानी सोखने से लाभ होता है। सूजन कम होती है। शरीर की सूजन के साथ पेशाब कम आता हो, एल्ब्यूमिन मूत्र में जाता हो, यकृत बढ़ गया हो, मन्दाग्नि हो, नेत्रों के आस पास और चेहरे पर विशेष रूप से सूजन हो तो नित्य पके हुए अनन्नास खायें और केवल दूध पर रहें। तीन सप्ताह में लाभ हो जाएगा। एक गिलास गर्म दूध में स्वाद के अनुसार पिसी हुई मिश्री, एक चम्मच हल्दी दोनों मिलाकर घोलकर नित्य पिएं। यह सूजन में लाभदायक है। सारे शरीर हाथ—पैर सूज गये हों तो इससे लाभ होता है। यह कुछ सप्ताह नित्य पियें। चौथाई चम्मच पिसी हुई हल्दी नित्य पानी से फंकी लेते रहने से सूजन मिट जाती है। गर्म—ठंडे पानी के पर्यायक्रम से सेंक करने से सूजन में लाभ होता है। पहले तीन मिनट गर्म पानी से सेक करें, फिर एक मिनट ठंडे पानी से सेक करें।

मुहांसों को दूर करने के उपाय:
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चेहरा कितना भी खूबसूरत क्‍यों ना हो अगर उसपर एक छोटा सा भी मुहांसा हो जाए तो वह पूरे चेहरे की सुंदरता को तार तार कर देता है। इसके लिए जरुरी है क‍ि आप अपने खाने-पीने पर और त्‍वचा की साफ सफाई का पूरा ध्‍यान दें। 

एक बार ये प्रयोग जरुर करे ---

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गोरखमुंडी 100 ग्राम ले। ये जड़ी बूटी बेचने वालों से आसानी से मिल जाती है।
इसे पीस ले।
1 कप पानी को उबाले। उबलते पानी मे एक चम्मच गोरखमुंडी का पाउडर डाल दे।
बर्तन को ढक दें। आंच बंद कर दे।
5 मिनट बाद छान कर पी ले। सुबह शाम 2 समय ले। यदि कड़वी दवा न पी सके तो मीठा मिला ले। यदि कब्ज भी हो तो आरोग्यवर्धिनी वटी (दिव्य फार्मेसी ) 1/2 ग्राम पानी के साथ सोते समय ले।
7-8 दिन मे मुहासे गायब हो जाएंगे। दवा 1 महिना ले ।
यदि ये दवा 6 महीने ले तो चश्मा उतर जाएगा। नजर कि कमजोरी दूर हो जाएगी।
स्थायी लाभ के लिए हर दिन सुबह शीर्षासन करे 1-5 मिनट तक।
लगाने के लिए Azithromycin Ointment लगाएँ।
कील मुहासों के स्थायी दाग हटाने के लिए कैशोर गुगुल (दिव्य फार्मेसी ) 2-2 गोली गर्म पानी से ले। 6 महीने मे स्थायी दाग भी हट जाएंगे।
चीनी +मैदा+चाय+अचार+इमली+ अमचूर न खाएं।

अन्य उपाय --
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1 मुहांसो से छुटाकारा पाने के लिए इंहे कभी भी ना फोड़े वरना इसका सीरम निकल कर पूरे चेहरे पर मुहांसे फैला देगा। मुहासों को तौलिए से ना रगड़े, ऐसे करने से आपके पूरे चेहरे पर मुहासे फैल सकते हैं। बेहतर होगा कि इसको अपने आप ही खत्‍म होने दें।
2 चंदन का पाऊडर पिंपल भगाने में बहुत लाभकारी होता है। यह न सिर्फ आपके चेहरे को फ्रेश करेगा बल्कि पिंपल को दुबारा लौटने से भी रोकेगा। चंदन पाऊडर को पिंपल पर 2-3 घंटो के लिए लगा रहने दें और चेहरे को ठंडे पानी से धो कर सूखा लें।
3 चेहरे पर गुलाब जल लगा कर छोड़ दें इससे आपकी स्‍किन के पोर्स खुल जाएगें और चेहरा तरोताजा हो जाएगा। इसको चंदन पाऊडर के साथ मिक्‍स कर के भी पिंपल पर लगाया जा सकता है।
4 चंदन पाऊडर को मुल्‍तानी मिट्टी और गुलाब जल को 10-15 मिनट के लिए चेहरे पर लगा रहने के बाद धो लें। यह रातभर में या केवल 2-3 दिनों में ही आपके चेहरे से पिंपल को गायब कर देगा।
5 टूथपेस्‍ट तो हम दांत साफ करने के लिए प्रयोग करते हैं, पर इसके इस्‍तमाल से आप अपने चेहरे के पिंपल को भी साफ कर सकते हैं। अगर रात में सोने से पहले इसको अपने चेहरे के मुहांसे पर लगा रहने देगें तो यह उन मुहासों को ठंडा कर के सुखा देगा।
6 नींबू का रस पिंपल भगाने में सबसे कारगर उपाय है। इसके रस से अपने चेहरे की 10-15 मिनट तक मालिश करने से राहत मिलेगी।
हां, अगर इसके प्रयोग से आपकी स्‍किन में जलन महसूस हो रही हो तो इसको डाइरेक्‍त ना इस्‍तमाल करें। तब इसको पानी या चंदन पाऊडर में मिला कर लगाएं।
7 लैवेंडर के तेल को चेहरे पर लगातार लगाना चाहिए जिससे पिंपल रात भर में ही गायब हो जाए। यह एक बहुत असरदार उपाय है पिंपल को दूर करने का।
8 दालचीनी और शहद को एक साथ मिला कर अपने मुहांसो पर हल्‍के हाथों से मलें। इसको एक साथ मिला कर पेस्‍ट भी तैयार कर सकती हैं और चेहरे पर लगा सकती हैं।

Thursday, 15 October 2015

नोनी फल सेहत के लिए फायदेमंद ::
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नोनी फल आम लोगों के लिए जितना गुमनाम है, सेहत के लिए उतना ही फायदेमंद है . जो मधुमेह, अस्थमा, गठिया, दिल के मरीजों सहित कई बीमारियों के इलाज में रामबाण साबित हो रहा है।
यह एक प्रकार का पौधा है, इसे मोरिन्डा सिट्रीफोलिया के नाम से जाना जाता है। इस फल को कई नामों से जाना जाता है, जैसे- हॉग एपल, चीज फल, लेड, दर्द निवारक वृक्ष और भारतीय शहतूत (हिंदी में आच, आक, आल, तमिल में वेन नूना, मलायालम में कट्टपिटलवम, तेलगु में मद्दी, मोलुगु मुलुगु)|
तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश, गुजरात, अंडमान निकोबार, मध्यप्रदेश आदि में खेती की जाती है |
नोनी पोषक तत्वों से भरपूर एक शक्तिशाली एंटी-ऑक्सिडेंट और कोशिका रक्षक आहार है|
यह पोटेशियम का एक मात्र सोत्र है और इम्यून सिस्टम, संचार प्रणाली, पाचन तंत्र, मेटाबोलिक सिस्टम, टिशूस और कोशिकाओं, त्वचा और बालों को सहायता करता है| यह पूरे परिवार के लिए सुरक्षित है और जवान एवं बुजुर्गों, दोनों के लिए ही लाभदायक है| यह पंचामृत है |
नोनी फल : यह त्वचा के घाव भरने में मदद करता है। यह मुहांसों के उपचार में भी सहायक है।
केंसर और एड्स जैसी भयंकर बीमारी में इस का जूस देने से रहत मिलती है |

नोनी के फायदे-

यह जोड़ों के दर्द, अकड़न, जोड़ों की गतिहीनता की समस्याओ आदि में सहायता करता है|
सांस की बीमारियों से पीड़ित व्यक्तियों को इसके सेवन से अत्यधिक लाभ मिलता है|
मुहांसों, एक्जीमा, सोरियासिस के मामले में सहायता करता है|
ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में सहायता करता है,और मधुमेह में यह कारगार है|
उच्च रक्तचाप और माइग्रेन से पीड़ित व्यक्तियों के लिए लाभदायक है|
गंजेपन और बालों से सम्बंधित समस्याओं की देखभाल करता है|
कब्ज, बदहजमी, दस्त आदि से पीड़ित व्यक्तियों को नोनी के सेवन से रोगों की मुक्ति मिलती है|

नोनी उपयोगी हो सकता है-

गठिया (जोड़ों की जकड़न, अकड़न एवं जोड़ों के स्वास्थ्य में)
दमा (सांस संबंथी समस्याओं में)
त्वचा संबंधी समस्याओं (खाज, मुंहासे, सोरियासिस एवं रोसासिया में)
कैंसर में (इम्यून सिस्टम)
पाचन (कब्ज, परजीवियों एवं दस्त)
दर्द (अनियमित माहवारी)
इम्पोटेंसी इम्यून सिस्टम की विफलता (एड्स एवं वाइरस)
मधुमेह, उच्च रक्तचाप,सरदर्द (माइग्रेन) में
संक्रमण एवं वाइरस (इम्यून सिस्टम)

मात्रा- नोनी ज्यूस 5 से 15 एम.एल. पानी में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करे| इसकी गोली और जूस आयुर्वेद शॉप में मिल सकता है |

नोनी जूस का सेवन शीशे के गिलास में ५ से १५ एमएल की मात्रा में लेकर उसमे २० से ६० एमएल हल्का गर्म पानी मिलाकर भोजन से आधा घंटा पूर्व सुबह-शाम करना चाहिए.
--यदि पेट में बहुत ज्यादा गैस बन रही हो तो १५ एमएल नोनी ६० एमएल गर्म पानी में मिलाकर कहीं भी बैठकर चाय की तरह घूंट घूंट करके धीरे धीरे पियें. आपको पांच दस मिनट में ही गैस से आराम मिल जाएगा.
--जीवन में हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पानी, चाय, कॉफ़ी अथवा एलोविरा, आंवला, नोनी या अन्य कोई भी जूस कभी भूल से भी खड़े होकर और एक घूंट में मत पीजिये. जमीन पर अथवा कुर्सी पर बैठकर जो कुछ भी आप चबाकर खाते हैं या घूंट घूँटकर धीरे धीरे पीतें हैं, वो चमत्कारिक रूप से शरीर को बहुत अधिक फायदा करता है.
एक बात का और विशेष ध्यान रखें कि स्टील का गिलास रासायनिक रिएक्शन के कारण एलोविरा, आंवला और नोनी के प्राकृतिक ओषधीय गुणों में कमी लाता है, इसलिए एलोविरा, आंवला और नोनी का जूस पीने के लिए हमेशा शीशे के गिलास का ही प्रयोग करें

Tuesday, 13 October 2015

शीशम से रोग निदान ::
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शीशम का वैज्ञानिक नाम डेलबर्जिया शीशू (Dalbergia sissoo) हैं, इसका देसी नाम शीशम तथा अंग्रेजी में इसे शीशू (Sissoo) के नाम से जाना जाता है। यह एक विशाल पर्णपाती (Deciduous) वृक्ष होता है, जिसकी ऊँचाई 30 मी0 तक होती है।
पारम्परिक चिकित्सा पद्धति में पत्तियों का अर्क सूजाक (Gonorrhoea) बिमारी के इलाज हेतु दिया जाता है। 
जड़ में खून का थक्का बनाने का गुण पाया जाता है।
शीशम की काष्ठ का शर्बत रक्त विकार के उपचार में कारगर होता है।
पत्तियों का क्वाथ फोड़े-फुंसी (Pimples) के उपचार में सहायक होता है।
नेत्ररोग में पत्तों का स्वरस शहद में मिलाकर 1-2 बूंद आँख में डालने से लाभ होता है।
8-10 पत्तो को दिन में ३ बार चबाते रहने से केंसर जैसी बीमारी ठीक होने लगती है |

कायाकल्प योग --सर्व रोग दूर करे ---~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

बुढ़ापे की आई सभी तरह की कमजोरी को दूर करता है ये योग 
भृंगराज और काले तिल 250-250 ग्राम आवला 125 ग्राम लें। 
सबको अलग अलग पीस छान कर 500ग्राम पुराना गुड अथवा शक्कर मिला कर प्रात 2 टेबल स्पून यानि 12 ग्राम सेवन करें। ( शुगर रोग वाले शक्कर नहीं मिलाये )
सर्व रोग दूर होते हैं। 

अगर एक वर्ष खाएं तो अँधा देखने गूंगा बोलने और बहरा सुन ने लग जाता है। सफेद बाल काले हो जाते हैं। जिस के दांत गिर गये हैं फिर से आ जाते हैं। आयु दीर्घ होती है। बल बुद्धि वीर्य बढ़ता है। 
इसको दूध के साथ लेना है ..पानी के साथ भी ले सकते है |
इसके सेवन काल में यद्यपि दुग्धपान का विधान है पर जिन्होंने इसका सेवन किया उन्होंने दूध भात लिया था। 
इस प्रयोग से झुर्रियां मिट जाती है। 
केश जङ से काले निकलते हैं। 
श्रवण शक्ति बढती है वाणी विकार दूर होते हैं। स्मरणशक्ति अद्भुत हो जाती है। 
नेत्र विकार दूर हो कर नेत्रज्योति बढ़ जाती है। 
एक महीने के बाद लाभ होने लगता है। 
सभी प्रकार के उदरमय रोग ठीक हो जाते हैं। 
तीन महीने में वाणी मधुर हो जाती है। स्मरणशक्ति बढ़ जाती है। शारीरिक पीड़ा जोड़ों का दर्द अनिद्रा और चिडचिडापन मिट जाता है।
हर घटक द्रव्य शुद्ध और ताजा ही लें और इस सरल योग का लाभ उठायें।
कोई भी व्यक्ति ले सकता है |

सहजन खाये स्वस्थ रहे ::

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स्‍वास्‍थ्‍य के हि‍साब से इसकी फली, हरी और सूखी पत्‍ति‍यों में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्‍शि‍यम, पोटेशि‍यम, आयरन, मैग्‍नीशि‍यम, वि‍टामि‍न-ए, सी और बी-काम्‍प्‍लेक्‍स प्रचुर मात्रा में पाई जाती है।
इनका सेवन कर कई बीमारि‍यों को बढ़ने से रोका जा सकता है। इसका बॉटेनिकल नाम 'मोरि‍गा ओलि‍फेरा' है। हिंदी में इसे सहजना, सुजना, सेंजन और मुनगा नाम से भी जानते हैं। इसकी कच्ची-हरी फलियां सबसे ज्‍यादा उपयोग में लाई जाती हैं।
सर्दियां जाने के बाद इसके फूलों की भी सब्जी बनाकर खाई जाती है। फिर इसकी नर्म फलियों की सब्जी बनाई जाती है। आमतौर पर इसका सेवन ग्रामीण इलाकों में अधि‍क देखने को मि‍लता है। जो लोग इसके बारे में जानते हैं, वे इसका सेवन जरूर करते हैं। सहजन के विभिन्न अंगों के रस को मधुर, वातघ्न, रुचिकारक, वेदनाशक,पाचक आदि गुणों के रूप में जाना जाता है। सहजन में दूध की तुलना में चार गुना कैल्‍श‍ियम और दोगुना प्रोटीन पाया जाता है।
सहजन का फूल पेट और कफ रोगों में, इसकी फली वात व उदरशूल में, पत्ती नेत्ररोग, मोच, साइटि‍का, गठिया आदि में उपयोगी है। इसकी छाल का सेवन साइटिका, गठि‍या, लीवर में लाभकारी होता है। सहजन के छाल में शहद मिलाकर पीने से वात और कफ रोग खत्‍म हो जाते हैं। इसकी पत्ती का काढ़ा बनाकर पीने से गठिया, साइटिका, पक्षाघात, वायु विकार में शीघ्र लाभ पहुंचता है। साइटिका के तीव्र वेग में इसकी जड़ का काढ़ा तीव्र गति से चमत्कारी प्रभाव दिखता है। मोच इत्यादि आने पर सहजन की पत्ती की लुगदी बनाकर सरसों तेल डालकर आंच पर पकाएं और मोच के स्थान पर लगाने से जल्‍दी ही लाभ मिलने लगता है।
१) सहजन के फूल उदर रोगों व कफ रोगों में इसकी फली वात व उदरशूल में पत्ती नेत्ररोग, मोच ,शियाटिका ,गठिया आदि में उपयोगी है।
२) सहजन की जड़ दमा, जलोधर, पथरी,प्लीहा रोग आदि के लिए उपयोगी है तथा छाल का उपयोग साईटिका ,गठिया,,यकृत आदि रोगों के लिए श्रेयष्कर है।
३) . सहजन के विभिन्न अंगों के रस को मधुर,वातघ्न,रुचिकारक, वेदनाशक,पाचक आदि गुणों के रूप में जाना जाता है
४) . सहजन के छाल में शहद मिलाकर पीने से वातए व कफ रोग शांत हो जाते है, इसकी पत्ती का काढ़ा बनाकर पीने से गठिया, शियाटिका ,पक्षाघात,वायु विकार में शीघ्र लाभ पहुंचता है\ साईं टिका के तीव्र वेग में इसकी जड़ का काढ़ा तीव्र गति से चमत्कारी प्रभाव दिखता है .
५) सहजन की पत्ती की लुगदी बनाकर सरसों तेल डालकर आंच पर पकाएं तथा मोच के स्थान पर लगाने से शीघ्र ही लाभ मिलने लगता है।
६) सहजन को अस्सी प्रकार के दर्द व बहत्तर प्रकार के वायु विकारों का शमन करने वाला बताया गया है।
७) सहजन की सब्जी खाने से पुराने गठिया और जोड़ों के दर्द व् वायु संचय , वात रोगों में लाभ होता है।
८) सहजन के ताज़े पत्तों का रस कान में डालने से दर्द ठीक हो जाता है।
९) .सहजन की सब्जी खाने से गुर्दे और मूत्राशय की पथरी कटकर निकल जाती है।
१०) . सहजन की जड़ की छाल का काढा सेंधा नमक और हिंग डालकर पीने से पित्ताशय की पथरी में लाभ होता है।
११) . सहजन के पत्तों का रस बच्चों के पेट के कीड़े निकालता है और उलटी दस्त भी रोकता है।
१२) सहजन फली का रस सुबह शाम पीने से उच्च रक्तचाप में लाभ होता है।
१३) सहजन की पत्तियों के रस के सेवन से मोटापा धीरे धीरे कम होने लगता है।
१४) . सहजन. की छाल के काढ़े से कुल्ला करने पर दांतों के कीड़ें नष्ट होते है और दर्द में आराम मिलता है।
१५) . सहजन के कोमल पत्तों का साग खाने से कब्ज दूर होती है।
१६) सहजन. की जड़ का काढे को सेंधा नमक और हिंग के साथ पिने से मिर्गी के दौरों में लाभ होता है।
१७) . सहजन की पत्तियों को पीसकर लगाने से घाव और सुजन ठीक होते है।
१८) सहजन के पत्तों को पीसकर गर्म कर सिर में लेप लगाए या इसके बीज घीसकर सूंघे तो सर दर्द दूर हो जाता है .
१९) सहजन के गोंद को जोड़ों के दर्द और शहद को दमा आदि रोगों में लाभदायक माना जाता है।
२०) . सहजन में विटामिन सी की मात्रा बहुत होती है। विटामिन सी शरीर के कई रोगों से लड़ता है खासतौर पर सर्दी जुखाम से। अगर सर्दी की वजह से नाक कान बंद हो चुके हैं तोए आप सहजन को पानी में उबाल कर उस पानी का भाप लें। ईस से जकड़न कम होगी।
२१) . सहजन में कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है जिससे हड्डियां मजबूत बनती है। इसके अलावा इसमें आयरन , मैग्नीशियम और सीलियम होता है।
२२) .सहजन का जूस गर्भवती को देने की सलाह दी जाती है। इससे डिलवरी में होने वाली समस्या से राहत मिलती है और डिलवरी के बाद भी मां को तकलीफ कम होती है।
२३) सहजन में विटामिन ए होता है जो कि पुराने समय से ही सौंदर्य के लिये प्रयोग किया आता जा रहा है। इस हरी सब्जी को अक्सर खाने से बुढापा दूर रहता है। इससे आंखों की रौशनी भी अच्छी होती है।
२४) सहजन का सूप पीने से शरीर का रक्त साफ होता है। पिंपल जैसी समस्याएं तभी सही होंगी जब खून अंदर से साफ होगा।
२५) . सहजन के बीजों का तेल शिशुओं की मालिश के लिए प्रयोग किया जाता है। त्वचा साफ करने के लिए सहजन के बीजों का सत्व कॉस्मेटिक उद्योगों में बेहद लोकप्रिय है। सत्व के जरिए त्वचा की गहराई में छिपे विषैले तत्व बाहर निकाले जा सकते हैं।
२६) . सहजन के बीजों का पेस्ट त्वचा के रंग और टोन को साफ रखने में मदद करता है।मृत त्वचा के पुनर्जीवन के लिए इससे बेहतर कोई रसायन नहीं है। धूम्रपान के धुएँ और भारी धातुओं के विषैले प्रभावों को दूर करने में सहजन के बीजों के सत्व का प्रयोग सफल साबित हुआ है।
२७ ) छाल का पावडर, शहद और पानी से ऐसा मिश्रण तैयार होता है जो शीघ्रपतन की समस्या का अचूक इलाज है।

सहजन के पोष्टिक गुणों की तुलना :
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विटामिन "सी" - संतरे से 7 गुना ज्यादा
विटामिन "A " - गाजर से 4 गुना ज्यादा
केल्शियम - दूध से 4 गुना
पोटेशियम - केले से 3 गुना
प्रोटीन - दही की तुलना में 3 गुना


Monday, 12 October 2015

गला और छाती की बीमारी का इलाज ::
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गले में किनती भी ख़राब से ख़राब बीमारी हो, कोई भी इन्फेक्शन हो, इसकी सबसे अच्छा दावा है हल्दी । जैसे गले में दर्द है, खरास है , गले में खासी है, गले में कफ जमा है, गले में टोनसीलाईटिस हो गया ; ये सब बिमारिओं में आधा चम्मच कच्ची हल्दी का रस लेना और मुह खोल कर गले में डाल देना , और फिर थोड़ी देर में ये हल्दी गले में निचे उतर जाएगी लार के साथ ; और एक खुराक में ही सब बीमारी ठीक होगी दुबारा डालने की जरुरत नही ।
ये छोटे बच्चो को तो जरुर करना ; बच्चो के टोन्सिल जब बहुत तकलीफ देते है न तो हम ऑपरेशन करवाके उनको कटवाते है ; वो करने की जरुरत नही है हल्दी से सब ठीक होता है ।
गले और छाती से जुडी हुई कुछ बीमारिया है जैसे खासी ; इसका एक इलाज तो कच्ची हल्दी का रस है जो गले में डालने से तुतंत ठीक हो जाती है चाहे कितनी भी जोर की खासी हो । दूसरी दावा है अदरक , ये जो अदरक है इसका छोटा सा टुकड़ा मुह में रखलो और टफी की तरह चुसो खासी तुतंत बंध हो जाएगी ।
अगर किसीको खासते खासते चेहरा लाल पड़ गया हो तो अदरक का रस ले लो और उसमे थोड़ा पान का रस मिला लो दोनों एक एक चम्मच और उसमे मिलाना थोड़ा सा गुड या सेहद । अब इसको थोडा गरम करके पी लेना तो जिसको खासते खासते चेहरा लाल पड़ा है उसकी खासी एक मिनट में बंध हो जाएगी ।
और एक अच्छी दावा है , अनार का रस गरम करके पियो तो खासी तुरन्त ठीक होती है । काली मिर्च है गोल मिर्च इसको मुह में रख के चबालो , पीछे से गरम पानी पी लो तो खासी बंध हो जाएगी, काली मिर्च को चुसो तो भी खासी बंध हो जाती है ।
छाती की कुछ बिमारिया जैसे दमा, अस्थमा, ब्रोंकिओल अस्थमा, इन तीनो बीमारी का सबसे अच्छा दवा है गाय मूत्र ; आधा कप गोमूत्र पियो सबेरे का ताजा ताजा तो दमा ठीक होता है, अस्थमा ठीक होता है, ब्रोंकिओल अस्थमा ठीक होता है ।
और गोमूत्र पिने से टीबी भी ठीक हो जाता है , लगातार पांच छे महीने पीना पड़ता है । दमा अस्थमा का और एक अच्छी दवा है दालचीनी, इसका पाउडर रोज सुबह आधे चम्मच खाली पेट गुड या शहद मिलाके गरम पानी के साथ लेने से दमा अस्थमा ठीक कर देती है।

Thursday, 8 October 2015

आंवले के प्रयोग ::
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वमन (उल्टी) : -* हिचकी तथा उल्टी में आंवले का 10-20 मिलीलीटर रस, 5-10 ग्राम मिश्री मिलाकर देने से आराम होता है। इसे दिन में 2-3 बार लेना चाहिए। केवल इसका चूर्ण 10-50 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ भी दिया जा सकता है।


* त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) से पैदा होने वाली उल्टी में आंवला तथा अंगूर को पीसकर 40 ग्राम खांड, 40 ग्राम शहद और 150 ग्राम जल मिलाकर कपड़े से छानकर पीना चाहिए।
* आंवले के 20 ग्राम रस में एक चम्मच मधु और 10 ग्राम सफेद चंदन का चूर्ण मिलाकर पिलाने से वमन (उल्टी) बंद होती है।
* आंवले के रस में पिप्पली का बारीक चूर्ण और थोड़ा सा शहद मिलाकर चाटने से उल्टी आने के रोग में लाभ होता है।
* आंवला और चंदन का चूर्ण बराबर मात्रा में लेकर 1-1 चम्मच चूर्ण दिन में 3 बार शक्कर और शहद के साथ चाटने से गर्मी की वजह से होने वाली उल्टी बंद हो जाती है।
* आंवले का फल खाने या उसके पेड़ की छाल और पत्तों के काढ़े को 40 ग्राम सुबह और शाम पीने से गर्मी की उल्टी और दस्त बंद हो जाते हैं।
* आंवले के रस में शहद और 10 ग्राम सफेद चंदन का बुरादा मिलाकर चाटने से उल्टी आना बंद हो जाती है।
संग्रहणी : -मेथी दाना के साथ इसके पत्तों का काढ़ा बनाकर 10 से 20 ग्राम की मात्रा में दिन में 2 बार पिलाने से संग्रहणी मिट जाती है।
"मूत्रकृच्छ (पेशाब में कष्ट या जलन होने पर) : -* आंवले की ताजी छाल के 10-20 ग्राम रस में दो ग्राम हल्दी और दस ग्राम शहद मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से मूत्रकृच्छ मिटता है।
* आंवले के 20 ग्राम रस में इलायची का चूर्ण डालकर दिन में 2-3 बार पीने से मूत्रकृच्छ मिटता है।
विरेचन (दस्त कराना) : -रक्त पित्त रोग में, विशेषकर जिन रोगियों को विरेचन कराना हो, उनके लिए आंवले के 20-40 मिलीलीटर रस में पर्याप्त मात्रा में शहद और चीनी को मिलाकर सेवन कराना चाहिए।
अर्श (बवासीर) : -* आंवलों को अच्छी तरह से पीसकर एक मिट्टी के बरतन में लेप कर देना चाहिए। फिर उस बरर्तन में छाछ भरकर उस छाछ को रोगी को पिलाने से बवासीर में लाभ होता है।
* बवासीर के मस्सों से अधिक खून के बहने में 3 से 8 ग्राम आंवले के चूर्ण का सेवन दही की मलाई के साथ दिन में 2-3 बार करना चाहिए।
* सूखे आंवलों का चूर्ण 20 ग्राम लेकर 250 ग्राम पानी में मिलाकर मिट्टी के बर्तन में रात भर भिगोकर रखें। दूसरे दिन सुबह उसे हाथों से मलकर छान लें तथा छने हुए पानी में 5 ग्राम चिरचिटा की जड़ का चूर्ण और 50 ग्राम मिश्री मिलाकर पीयें। इसको पीने से बवासीर कुछ दिनों में ही ठीक हो जाती है और मस्से सूखकर गिर जाते हैं।
* सूखे आंवले को बारीक पीसकर प्रतिदिन सुबह-शाम 1 चम्मच दूध या छाछ में मिलाकर पीने से खूनी बवासीर ठीक होती है।
* आंवले का बारीक चूर्ण 1 चम्मच, 1 कप मट्ठे के साथ 3 बार लें।
* आंवले का चूर्ण एक चम्मच दही या मलाई के साथ दिन में तीन बार खायें।
शुक्रमेह : -धूप में सुखाए हुए गुठली रहित आंवले के 10 ग्राम चूर्ण में दुगनी मात्रा में मिश्री मिला लें। इसे 250 ग्राम तक ताजे जल के साथ 15 दिन तक लगातार सेवन करने से स्वप्नदोष (नाइटफॉल), शुक्रमेह आदि रोगों में निश्चित रूप से लाभ होता है।
खूनी अतिसार (रक्तातिसार) : -यदि दस्त के साथ अधिक खून निकलता हो तो आंवले के 10-20 ग्राम रस में 10 ग्राम शहद और 5 ग्राम घी मिलाकर रोगी को पिलायें और ऊपर से बकरी का दूध 100 ग्राम तक दिन में 3 बार पिलाएं।
रक्तगुल्म (खून की गांठे) : -आंवले के रस में कालीमिर्च डालकर पीने से रक्तगुल्म खत्म हो जाता है।
प्रमेह (वीर्य विकार) : -* आंवला, हरड़, बहेड़ा, नागर-मोथा, दारू-हल्दी, देवदारू इन सबको समान मात्रा में लेकर इनका काढ़ा बनाकर 10-20 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम प्रमेह के रोगी को पिला दें।
* आंवला, गिलोय, नीम की छाल, परवल की पत्ती को बराबर-बराबर 50 ग्राम की मात्रा में लेकर आधा किलो पानी में रातभर भिगो दें। इसे सुबह उबालें, उबलते-उबलते जब यह चौथाई मात्रा में शेष बचे तो इसमें 2 चम्मच शहद मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से पित्तज प्रमेह नष्ट होती है।
पित्तदोष : -आंवले का रस, शहद, गाय का घी इन सभी को बराबर मात्रा में लेकर आपस में घोटकर लेने से पित्त दोष तथा रक्त विकार के कारण नेत्र रोग ठीक होते हैं|

Wednesday, 7 October 2015

छुई मुई ( लाजवंती ) से मर्दाना इलाज ::~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

छुई-मुई के पौधे को अगर कोई छू ले तो उसकी पत्तियां शरमाकर सिकुड़ जाती हैं। अपने इस स्वभाव की वजह से इसे शर्मीली के नाम से भी जाना जाता है। शर्मीले स्वभाव के इस पौधे में जिस तरह के औषधीय गुण हैं, छुई-मुई को जहां एक ओर देहातों में लाजवंती या शर्मीली के नाम से जाना जाता है। वहीं, इसका वानस्पतिक नाम माईमोसा पुदिका है। संपूर्ण भारत में होने वाला यह पौधा अनेक रोगों के निवारण के लिए उपयोग में लाया जाता है। 
-- छुई-मुई की जड़ों और बीजों का चूर्ण दूध के साथ लेने से पुरुषों में वीर्य की कमी की शिकायत में काफी हद तक फायदा होता है। इसकी जड़ों और बीजों का चूर्ण दूध के साथ लेने से पुरुषों में वीर्य की कमी की शिकायत में काफी हद तक फायदा होता है। इसकी जड़ों और बीजों के चूर्ण की 4 ग्राम मात्रा हर रात एक गिलास दूध के साथ एक माह तक लगातार ले।
--- छुई-मुई और अश्वगंधा की जड़ों की समान मात्रा लेकर पीस लिया जाए और तैयार लेप को ढीले स्तनों पर हल्के-हल्के मालिश किया जाए तो धीरे-धीरे ढीलापन दूर होता है।
---छुई-मुई के बीजों के चूर्ण (3 ग्राम) को दूध के साथ मिलाकर रोजाना रात को सोने से पहले लिया जाए तो शारीरिक दुर्बलता दूर हो जाती है।
---छुई-मुई का पौधा घावों को जल्द से जल्द ठीक करने में बहुत ज्यादा सक्षम होता है। इसकी जड़ों का 2 ग्राम चूर्ण दिन में तीन बार गुनगुने पानी के साथ लिया जाए तो आंतरिक घाव जल्द ठीक होने लगते हैं।
--हड्डियों के टूटने और मांस-पेशियों के आंतरिक घावों के उपचार में छुई-मुई की जड़ें काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। घावों को जल्दी ठीक करने में इसकी जड़ें सक्रियता से कार्य करती हैं।
-- छुई-मुई के पत्तों को पानी में पीसकर नाभि के निचले हिस्से में लेप करने से पेशाब का अधिक आना बंद हो जाता है। पत्तियों के रस की 4 चम्मच मात्रा दिन में एक बार लेने से भी फायदा होता है।
--- छुई-मुई की जड़ और पत्तों का पाउडर दूध में मिलाकर दो बार लेने से बवासीर और भगंदर रोग ठीक होता है। पत्तियों के रस को बवासीर के घाव पर सीधे लगाने से घाव जल्दी सुख जाता है और अक्सर होने वाले खून के बहाव को रोकने में भी मदद करता है।
-- छुई-मुई की जड़ों का चूर्ण (3 ग्राम) दही के साथ खूनी दस्त में जड़ों का पानी में तैयार काढ़ा भी खूनी दस्त रोकने में कारगर होता है।
-- छुई-मुई के पत्तों का 1 चम्मच पाउडर मक्खन के साथ मिलाकर भगंदर और बवासीर होने पर घाव पर रोज सुबह-शाम या दिन में 3 बार लगाने से ठीक हो जाता है |
-- यदि छुई-मुई की 100 ग्राम पत्तियों को 300 मिली पानी में डालकर काढ़ा बनाया जाए और इसे डायबिटीज रोगी को दिया जाए तो डायबिटीज में काफी फायदा होता है।